Wednesday, July 9, 2014

किसको अपना कहें?

मैंने काँटों को नरमी से छुआ है अक्सर

लोग बेदर्द हैं कि फूलों को मसल देते हैं!

 

सफ़र लंबा हो तो तनहा चलना ही अच्छा

अक्सर रौशनी में लोग साया भी खो देते हैं!

 

सवालात ही किया बात किया कुछ भी

पाकर के सामने तुम्हें हम ख़ुद ही रो देते हैं!

 

वफ़ा--चराग़ से जब रोशन किया जहाँ में

जफ़ा के तीर आकर हवा बिखेर देते हैं!

 

अमरकिसको कहे अपना इस दुनिया में

मुस्करा के बार-बार लोग दिल तोड़ देते हैं!


-अमर कुशवाहा

भुलाऊँ कैसे?

अपना धड़कता हुआ दिल दिखाऊँ कैसे?

बात निकली नहीं अब तक बताऊँ कैसे?

 

सर्द मौसम में सिमट जाती है सारी रात

दिन गुजर जाता है किस्सा दुहराऊँ कैसे?

 

ख़्वाबों की ताबीर उड़ जाती है हर सुबह

भींगे तकिये को ज़माने से छुपाऊँ कैसे?

 

आईना खड़ा करता है अब सवाल कई

बड़ा कठिन है हल उसे समझाऊँ कैसे?

 

बिखरे चंद सफ़हों में लाखों लम्हेंअमर

आते हैं मुझे याद आख़िर भुलाऊँ कैसे?

-अमर कुशवाहा