Wednesday, July 9, 2014

भुलाऊँ कैसे?

अपना धड़कता हुआ दिल दिखाऊँ कैसे?

बात निकली नहीं अब तक बताऊँ कैसे?

 

सर्द मौसम में सिमट जाती है सारी रात

दिन गुजर जाता है किस्सा दुहराऊँ कैसे?

 

ख़्वाबों की ताबीर उड़ जाती है हर सुबह

भींगे तकिये को ज़माने से छुपाऊँ कैसे?

 

आईना खड़ा करता है अब सवाल कई

बड़ा कठिन है हल उसे समझाऊँ कैसे?

 

बिखरे चंद सफ़हों में लाखों लम्हेंअमर

आते हैं मुझे याद आख़िर भुलाऊँ कैसे?

-अमर कुशवाहा

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