Friday, June 24, 2016

पीड़िता

पुनः अंतर्नाद एक पीड़िता की

क्षत-विक्षत तन और अस्मिता की

राक्षसों से भी भयंकर अत्याचारी यहाँ

क्यूँ-कर बचेगी लाज अब धरा की!

 

माता-बहन-पत्नी यहाँ सुरक्षित नहीं

यहाँ काटते श्वान हैं बस भौकतें नहीं

नारी को कह देवी बस पूजते हैं

और समय-समय पर लहू उसका चूसते हैं!

 

भूल चुके हैं इतिहास सब कुरुक्षेत्र की

द्रोपदी का चीर-हरण और उसके परिणाम की

चाहे ही बलशाली हो कितना रावण कहीं

सजा उसको भी मिली है जानकी के श्राप की!

 

कुछ दशक पहले महादेवी ने लिखा था

नारी कोनीर भरी दुःख की बदलीकहा था

कैसे भला उसे अबलत्व से मुक्ति मिले?

क्यूँ-कर किसी ने परिवर्तन को सत्य कहा था?

-अमर कुशवाहा

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