मेरी ही बातें मेरी ही दुनिया मेरा ही है सपना भी
मेरी है सृष्टि मेरी है भक्ति मेरा ही है अपना भी
मेरा ही रूप मेरी ही शक्ति मेरा ही गुणगान है
मेरे ही नेत्र मेरे ही अश्क मेरा ही विज्ञान है!
मेरा ही सूर्य मेरा ही चाँद मेरा ही प्रहलाद है
मेरे ही बादल मेरा ही जल मेरी ही बरसात है
मेरी ही गर्जन मेरी ही तड़पन मेरा ही परवाज है
मेरे ही शब्द मेरे ही बोल मेरा ही आगाज है!
मेरा ही बंधन मेरा ही शरीर मन भी मेरा ही है
मेरा ही पग मेरा ही रस्ता अधिकार भी मेरा ही है
मेरा ही अनंत मेरा ही अंत मेरा ही संधान है
मेरा ही बाग मेरे ही पुष्प मेरा ही निर्वाण है!
मेरी है अग्नि मेरा है जल मेरा अखंड ब्रह्माण्ड है
मेरा है विनाश मेरा है विकास मेरा ही अशांत है
सब कुछ जब मेरा ही है भटक रहा हूँ फिर क्यों ही?
-अमर कुशवाहा
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