Saturday, June 18, 2016

काश

काश!

कहीं ऐसा हो जाता, कि

वो लम्हा फिर से लौट आता

तुम सामने बैठे होते मेरे

पलकों पर वो लाज़ का परदा

बोझिल पलकों का हौले से उठना

और मेरी आँखें देख उनका बंद होना

अप्रतिम मुस्कान अधरों पर खिलना!

 

काश!

लौट आता वो पल, जिसमें

दिल में उठती थी कसक कुछ कहने की

तुम्हारे सामने जाकर सब कुछ भूल जाना

सांझ पहर से ही तुम्हारे सपनें बुनना

रातों में तनहाई से बातें करना

तुम्हारे झलक की प्रतीक्षा में सो जाना!

 

काश!

लौट आता वो पल, जिसमें

पत्तों पर तुम्हारा नाम लिखकर उड़ाना

दिल का गीत बन होंठो पर आना

कुछ कह पाने की तड़प में खुश होना

रात को चाँद में तुम्हारा अक्स देखना

और फ़िर मेरे गलें का रुंध जाना!

 

काश!

लौट आता वो पल, जिसमें

पल तुमसे बिछुड़ने का

इस बार नहीं जाने देता तुम्हें!

रोक लेता उस पल को

आख़िरी साँस तक!


-अमर कुशवाहा

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