Tuesday, June 21, 2016

एक नया स्वाभिमान

वस्तु-विषय या अपलक पथ किसका मैं गुणगान करूं?

निज-स्वार्थ तपस्या छोड़ कर क्या कर्मों का अनुनाद करूं?

क्या  बिखरे के शब्दों के मोती ढूढूँ अंत अनंत का?

या फिर तज सारी चंचलता एक नया स्वाभिमान बनूँ?

 

क्षण-भंगुरता के अश्कों को क्या सूर्य से पीना मैं सीखूं?

अधर्म-अग्नि से तप रही धरा को क्या मेघ बनकर खुद सीचूं?

हरित कपोलों से मिलकर क्या वृक्षों का निर्माण करूं?

या फिर तज सारी चंचलता एक नया स्वाभिमान बनूँ?

 

विघटित होते बंधन के जड़ क्या उनको जाकर मैं जोड़ूं?

क्या दैत्य सरीखी और अमानवीय विह्वलता को मैं छोडूं?

सजा कनिष्ठा पर गोवर्धन क्या असत्य के गर्व को चूर करूँ?

या फिर तज सारी चंचलता एक नया स्वाभिमान बनूँ?


-अमर कुशवाहा

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