Saturday, June 18, 2016

नया रूप

छलकें थे कुछ आंसू
तो अक्स उसका मिला था
मस्तिष्क के पटल पर
एक दृश्य सा खिला था
उस मूर्ति की चाह पहले ही
पहुँच चुकी थी शायद
अरमानों में बिखरकर
धूलों में मिल चुकी थी
उड़ती रही साथ-साथ
स्वप्नों के इस भंवर में
जोड़ू कैसे चित्रों को
विचार में खो चुकी थी
एक दिन अचानक
सावन झूम के आया
अरमानों के समंदर में
फूलों को बरसाया
तब जाके कहीं दूर
कण-कण में आ जुटे थे
और पुनः एक नए रूप को
बरबस ही रच चुके थे!!!!

-अमर कुशवाहा

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