क्यूँ पूरब है क्यूँ-कर पश्चिम?
क्यूँ-कर उत्तर क्यूँ है दक्षिण?
इस अखंड देश को किसने खंड-खंड कर डाला है?
कभी धर्म, कभी
जांति-पाँति कई टुकड़ों में क़तर डाला है!
कहीं क्षेत्रवाद के नारे तो कहीं है गूँज आरक्षण की
कहीं होता चारा-घोटाला कभी बातें गो-रक्षण की
कहीं भूख कि लपटों में माँ की लोरी रोती है
अक्सर बच्चों के संग वो भूखे पेट ही सोती है
कहीं किसी की ऐयाशी पर करोड़ों रुपयें बहाए जाते हैं
कहीं छब्बीस रुपये में केवल लोग अमीर बनाए जाते हैं
सुनों देश को तोड़ने वालों सीमा होती टूटन की भी
नहीं बढ़ा सकते दबाव सीमा होती घुटन की भी
मत भूलो की अंतिम टुकड़े को परमाणु कहा जाता है
ज्यादा दबाव हो इस टुकड़े पर तो यह परमाणु-बम बन जाता है
अब और न तोड़ो भारत को कि हर टुकड़ा एटम-बम बन जाए
इस वसुंधरा पर फिर कोई जीवन शेष न रह जाए
इस वसुंधरा पर फिर कोई जीवन शेष न रह जाए!
-अमर कुशवाहा
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