वही झनझनाहट
वही पुराना गुस्सा
वही मधुर स्वर गूंजती हुई
फिर से मुझे सुनाई दी है!
कुछ ऐसा लगा----कि
तुम्हें पता है
मैं कौन हूँ?
तुम कौन हो?
हमारे रिश्ते की सार्थकता क्या है?
पहली बार ऐसा हुआ
तुम मेरी ख़ामोशी पर
मुंह न मोड़ते हुए
मेरे सन्नाटे को परखती रही
और तभी संगीत सा बजा था!
मैं इतना क्रूर कैसे हो सकता था?
इंतजार, और तुमसे!
मैं सोच भी नहीं सकता!
तुम्हारी आँखें किसी को ढूंढें
इससे पहले ही
मैं उसे तुम्हारे सामने खड़ा कर देता!
बस,
एक यही वजह
और मेरी खामोशी बंद हो गयी!!!
-अमर कुशवाहा
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