ख्व़ाब
कितनें ही रूप बदलें है
तुमने!!
पहले ख़्वाब ख़्वाब ही था
फिर हो गया कांग्रेसी!
लीग की दरख्तों से गुज़रकर
जनसंघी भी हुआ!!
ख्वाबों की फ़ेहरिस्त
और भी लंबी है
समाजवादी ख़्वाब,
कम्युनिस्ट ख़्वाब
बहुवादी ख्व़ाब!!
इतने सारे ख्वाबों में
भारत कहीं खो गया है
बस जाग रहीं हैं लाशें
-अमर कुशवाहा
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