‘ईर्ष्या’ हूँ
मैं!
जलन, खुन्नस, डाह मेरे पर्याय हैं
छल-कपट, भय मेरे दो हाथ हैं
मैं सर्वव्यापी हूँ सदा अनादिकाल से!
मैंनें ही रचा महाभारत
दुर्योधन मेरा ही एक रूप था
कितने ही बलशाली हो द्रोण व भीष्म
मिट गया अस्तित्व!
रावण में मेरा ही अक्स
सीता-अपहरण मैंने ही कराया
भटकाया राम को जंगलों में
रामायण को मैंने ही रचाया!
मौर्य से ब्रिटिश तक
साम्राज्य फैला था मेरा
जब चाहा जोड़े रखा
जब चाहा टुकड़ों में तोड़ दिया!
अनन्त वर्ष बीत जाने के बाद भी
मैं ही अकेला सत्य हूँ
इस सदी में और भी प्रासंगिक
मैं हर हृदय में रहता हूँ!
कभी परिवारों में विघटन
कभी रिश्तों में टूटन
कभी बसा मैं परमाणु-युद्ध में
मैं हर कण-कण में विद्ममान हूँ!
-अमर कुशवाहा
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