मेरे जीवन का प्रथम शब्द
प्रथम क्षुधा भी तुमने मिटाई
कितने कष्ट सहन कर
मुझमें तुम जीवन लाई
अनभिज्ञ थी दुनिया जिससे
उस भाषा को तुमने समझा
मेरी तोतली-बोली की हर जरुरत
बोलने से पहले तुमने समझा
और मैं क्या उपमा दूँ
तुम हर उपमा के पार हो
यदि ईश्वर की कोई सीमा है
माँ तुम उस सीमा के पार हो!
-अमर कुशवाहा
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