पूनम में
नहाया चाँद न देख
ख्व़ाब को
देखा करते हैं
तस्वीर तेरी आगे रख
कर हम
तुम को
देखा करते हैं!
झपकी पलकें उनींदी आँखें दीदार तुम्हारा करते हैं
जिस राह
गुज़रते हो
अक्सर उस
राह को
देखा करते हैं!
जब आँख
खुली तो
हमने पाया नींद सिरहाने छूट गयी
धीरे-धीरे बुझती जाती हम रात
को देखा करते हैं!
रस्मों कि
ज़रूरत हैं
क्यों फ़िर
जब रूह
मिली है
तुमसे
जिसकी छाँव में प्रेम पला उस
बाग़ को
देखा करते हैं!
इकरार-ए-वफ़ा का
मतलब न
जाने कब
समझें ‘अमर’
अधरों के कोनों में बिखरी मुस्कान को देखा करते हैं!
-अमर कुशवाहा
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