मंजिलों की भूलों में तन!
तड़पन मेरी है हंसना मेरा!
नींदे मेरी हैं सपना तेरा!
तनहा सा सफर ठहरा हुआ!
तम अब और भी गहरा हुआ!
बिन तुम्हारे बदला है जहाँ!
न आशियाँ है न पनाह!
जब तेरा अक्स झलकता है!
झील का उथला जल लहरता है!
कुछ कहने को सदा बैठी हुई!
दूरी के परिहास पर कुछ रूठी हुई!
क्या खला है कैसी है मजबूरी!
दो पल का साथ अब मीलों की दूरी!
ठहर ये वक्त उन्हें आने दे!
या मुझे बीते लम्हों में लौट जाने दे!!
-अमर कुशवाह
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