कहानी कहूँ कैसे?
सब कुछ बदल गया है
नहीं बदले हैं तो
मेरे शब्द !
उनमे झलकती
मेरी तड़पन !
लम्हें वही हैं !
कहानी भी वही है !
पर सुनाऊँ किसे?
जंजाल खुद थक चुका है !
उलझ चुका है
खुद के जाल में !
काश!
सुनने वाले लौट आते !
बहुत जख्म हरे हो चुके हैं !
नासूर बन चुका है !
कहीं से आ जाओ
मेरे हमदम !
आज बहुत ही लोग हैं
पर,मैं अकेला हूँ !!
-अमर कुशवाहा
No comments:
Post a Comment