Saturday, June 18, 2016

ख़ामोशी

आदतन रोक लेते है
रंजिश को अपने अंदर!
आदत नहीं!
सीखा ही नहीं!
नफरतों के तीर चलाना!


दोस्तों के शहर में
किस-किस को पुकारूं ?
क्या बताएं प्यार की तमन्ना
वफ़ा की राह का मतलब!
वो जीतते रहे...
और मैं हारता रहा!


ग़मों के परिंदों ने घेर रखा है!
उड़ जाऊं कि जमीं पर कदम रखूं?
जिंदगी की तरह जो प्यारे थे
अजनबी की तरह मिलते क्यूँ हैं?


शायद अब नहीं,
पहरों किया करते थे जिन्हें याद !
अटक गए हैं लफ़्ज
शायद खामोश से हैं!!!

-अमर कुशवाहा

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