जरा ठहरों न इस छाँव सखा
तकने दो गुजरा पड़ाव सखा!
यह वही पड़ाव जिसपे रूककर
बातें करते थे हम हँसकर
चलती रहती थी राह सखा!
जरा ठहरों न इस ठाँव सखा
तकने दो गुजरा पड़ाव सखा!
यह पड़ाव बहुत कुछ कहती थी
बस सपने बुनते रहती थी
जीवन में भरा था राग सखा!
जरा ठहरों न इस ठाँव सखा
तकने दो गुजरा पड़ाव सखा!
इस पड़ाव से गुजरे हो तुम भी
इस पड़ाव से गुजरे हैं हम भी
रह गयी यादों की पिटार सखा!
जरा ठहरों न इस ठाँव सखा
तकने दो गुजरा पड़ाव सखा!
-अमर कुशवाहा
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