Monday, August 21, 2017

माँ

माँ अब भी

काजल लगा ही देती है

घर से निकलने से पहले

और फ़िर बेफिक्री से

घूमता रहता हूँ मैं

शामोंसहर!

 

जब वापिस आता हूँ

तो माँ फ़िर लग जाती है

नज़र उतारने में मेरी!

 

कितनी मासूम है माँ!

वह यह भी नहीं जानती

कि जो काजल उसने

लगाया था मेरे माथे पर!

उसके आगे झुकतीं हैं

ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियाँ!

 

फ़िर भी उतारती है नज़र

वापिस लौटने पर मेरी!


-अमर कुशवाहा

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