Monday, August 21, 2017

मेरा गाँव

पक्की सड़क से मुड़कर
गुजरते पगडंडियों से
उसी पीपल के पीछे से
छिपकर, झाँकता है
मेरा गाँव।
कितने पग गुजरते थे
उन पगडंडियों से,
कितनों ने पनाह पायी थी
पीपल के छाँव तले
धुप और बारिश के झींसे से,
गाँव निहारता रहता है
मेरे पग अब
पगडंडियों पर नहीं जाते,
शहर ने बांधकर
मुझे कैद कर रखा है।


-अमर कुशवाहा

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