Monday, August 21, 2017

शायद यही प्रेम है!

कई बार अनचाहे ही

बहुत कुछ कह देता हूँ

रुखे-सूखे शब्दों में

और तुम….बस

चुप-चाप सुन लेती हो

असहज होकर भी!

 

तुम भी तो कई बार

डाल ही देती हो

ज्यादा मिर्च सब्जी में

और दाल में अधिक नमक

मैं खा लेता हूँ...चुप-चाप

बिना मीन-मेख निकाले!

 

हम दोनों ख़ूब जानते हैं

रूखे-सूखे शब्द महत्वपूर्ण नहीं

और ही अधिक नमक मिली

दाल और सब्जी!

 

क्योंकि! कुछ देर बाद!

कुछ दिन बाद!

शब्द मीठे भी होंगे, और

नमक सधा हुआ!

शायद यही प्रेम है!

-अमर कुशवाहा

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