कई बार अनचाहे ही
बहुत कुछ कह देता हूँ
रुखे-सूखे शब्दों में
और तुम….बस
चुप-चाप सुन लेती हो
असहज होकर भी!
तुम भी तो कई बार
डाल ही देती हो
ज्यादा मिर्च सब्जी में
और दाल में अधिक नमक
मैं खा लेता हूँ...चुप-चाप
बिना मीन-मेख निकाले!
हम दोनों ख़ूब जानते हैं
रूखे-सूखे शब्द महत्वपूर्ण नहीं
और न ही अधिक नमक मिली
दाल और सब्जी!
क्योंकि! कुछ देर बाद!
कुछ दिन बाद!
शब्द मीठे भी होंगे, और
नमक सधा हुआ!
-अमर कुशवाहा
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