Monday, August 21, 2017

किसी की याद

तनहा रात में अक्सर बदन में अगन आती है
पलकें मुंद जाती पर नींद मअन आती है।


दो घड़ी लेट कर सिलवटों को मैं सुनता रहा
कि किसकी है पाज़ेब ख्यालों में बसन आती है।


करवट बदल कर यूँ ही दीवारों पर पड़ी नज़र
कि चुपके से मेरी बाँहें तकिया सा बन आती हैं।


दूजे पहर में रात-रंग अब ख़ूब गहरा चढ़ा हुआ
किसकी तस्वीर में बिज़ली सा तपन आती है।


आख़िर उतर पलँग से खिड़कियाँ खोलताअमर
किसके होने के सबब में चाँदनी मगन आती है।


-अमर कुशवाहा

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