Monday, August 21, 2017

कुछ गाँव से (संस्मरण)_“नई दुल्हन की होली”

होली का उत्तर-भारतीय परिवेश में बाकी के अन्य त्योहारों से थोडा-अधिक महत्व है, ऐसा मुझे प्रतीत होता हैI होली में ही सब अपनी बीतीं बातें भूलकर एक ही रंग में रंग जाते हैं- मस्ती और मिलन के रंग मेंI उम्र के ३०वें पड़ाव पर पहुंचतें हुए विगत वर्षों में होली के अनेक रंग देखे हैं मैंनेI दिल्ली जैसे महानगर की होली, गोरखपुर की होली, तमिलनाडु के शिवकाशी शहर के बड़ी हवेली के बीच अकेले बिना रंगों वाली होली भी, यदि सत्य कहूं तो होली की जो आत्मीयता है, वह मुझे अपने गाँव “गौरी” में ही मिली है, लाख-बार चाहा पर अभी तक कहीं और ढूंढनें में असफल ही रहा हूँI
यही कोई ९-१० वर्ष की उम्र रही होगी मेरीI कुछ दिनों बाद ही होली का त्यौहार थाI लेकिन हम लोगों की होली पिछले दस दिनों से चल रही थीI अलग-अलग तरह की पिचकारियाँ पापा पहले ही लेकर आ चुके थे, जो सबसे बड़ी पिचकारी थी, आदतन मेरे छोटे भाई साहब “गुड्डू” ने उस पर अपना अधिकार पहले ही जमा लिया थाI भैया अपनी पिचकारी को अपनी आदत के अनुसार सहेज कर अलमारी में छुपा चुके थेI रंगों की पूड़ियों का बंटवारा भी पहले ही हो चुका थाI उस समय तक बंदूक वाली पिचकारियाँ मेरे गाँव तक नहीं पहुँच पायी थीI लेकिन जिस पिचकारी ने मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित किया था वह था बांस का बना किसी मोटे-बड़े इंजेक्शन सरीखा पिचकारी था, जिसे बनाने में गाँव के बच्चों को महारत हासिल थी, जिसमें रंग ज्यादा भरा जा सकता था और बहुत दूर से हमला भी किया जा सकता थाI बहुत चाह रही कि ठीक वैसी ही एक पिचकारी मेरी भी हो, पर चाह केवल चाह ही रहीI बड़े बाबूजी ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया और कहा कि यह पिचकारी छोटी हैसियत के लोग चलाते हैं, जिनके पास प्लास्टिक वाली पिचकारी खरीदनें के पैसे नहीं होतेI सच कहूँ तो पहली बार अहसास हुआ था, कि हैसियत बड़ी होने से ख्व़ाब टूट जाते हैंI आज तक खुद की बाँस से बनी पिचकारी नहीं चला सकाI
पिछले कई सालों की तरह इस बार की भी होली ठीक वैसे ही शुरू हुई थीI शहरों के विपरीत, हमारे गाँव में होली शाम को खेली जाती थीI हम-लोग तो खैर सुबह से ही धमा-चौकड़ी शुरू कर देते थेI लगभग तीन बजते ही, बच्चे और बूढ़े, खूँटी काका के दुआर पर इकठ्ठे हो गए, ढ़ोलक रामजी के गले से लटक गया तो मजीरा गुंडू कहार के हाथ की शोभा बढ़ाने लगा और होली के रंग में जोगीरा शुरू हो गयाI संतराम चाचा और घुरहू के घर से होते हुए टोली हमारे घर पहुंचीI उस समय गाँव पर हमारा संयुक्त परिवार हुआ करता था, बड़े-बाबूजी, बड़ी-अम्मा और उनके बच्चे, छोटे-बाबूजी, छोटी-अम्मा और उनके बच्चे, मम्मी-पापा और हम तीन भाई, और हमारी ईया (हम लोग दादी को ईया कहते थे)I पिचकारियों से हमला शुरू हो गया, गुलाल उड़ रहे थे, ढ़ोल-मजीरे के साथ जोगीरा की धुन जमी हुई थी और साथ ही साथ गुझियों, गरी और छुहारों का स्वाद भी मिल रहा थाI
उसी वर्ष हमारे गाँव के हरिशंकर यादव के परिवार के एक लड़के की शादी हुए कुछ-एक महीने ही हुए थेI नई दुल्हन की यह विवाहोपरांत पहली होली थीI जितना रोमांच गाँव की लड़कियों को उनके साथ होली खेलने का था, उससे कहीं ज्यादा रोमांच हम लड़कों को होली खेलनें के बहाने नई दुल्हन का चेहरा देखनें का थाI आज सुबह-सुबह ही हम बच्चों की योजना तैयार हो गयी थी, जरुरत थी तो बस उसपर अमल करने कीI जब होली का झुण्ड घर-घर घूमते हुए, हरिशंकर यादव के दुआर से होकर गुजरा, तो मैं, रिंकू, प्रमोद, सहदेव, हरिश्चंद्र, जगदीश, दिलीप, रामवृक्ष, मुन्नानाल आदि नई भौजी (भाभी) के मकान के आगे रुक गएI अन्दर सारी लडकियां नई भौजी के साथ होली खेलनें में मशगूल थींI यहाँ बाहर हमारी टोली ने दहाड़ लगाई- “भौजी फ़ाटक खोलो, हमहू होली खेलब”, पर ओशारे का दरवाजा नहीं खुला, बस खिड़की से तनिक भर झाँका-झांकी हो पायीI इधर हमारी टोली की दहाड़ और बढ़ चली थीI गलती से मुन्नालाल ने इस दहाड़ का अर्थ यह लगा लिया की हम सब शेर हैं और वह अकेले ही दहाड़ते हुए ओशारे के दरवाजे तक पहुँच गयाI अचानक बिजली की गति से दरवाजा खुला, दो-तीन हाथ बाहर निकले, और इससे पहले कि हम लोगों को इस अप्रत्याशित हमले के बारे में कुछ समझ आता, तबतक मुन्नालाल को अन्दर खींचकर दरवाजा बंद किया जा चुका थाI हम लोग और जोर से चिल्लाने लगे, तब जाकर दरवाजा खुला और मुन्नालाल धड़ाम से दरवाजे के बाहर ठीक वैसे ही रूप में गिरा, जिस रूप में उसने जन्म लिया था-निर्वस्त्र! उस बेचारे के शरीर का कोई भी ऐसा अंग नहीं बचा रह गया था, जिसे रंग से लाल न कर दिया गया हो! “लाल” मुन्नालाल ने रोते-रोते सारी लड़कियों और नई भौजी के पूरे खानदान के माँ-बहन को खूब जम कर याद कियाI इस प्रथम हार से ही हमारी टीम के पैर उखड़ चुके थेI सब मैदान छोड़ अपनी-अपनी इज्ज़त बचाकर भाग खड़े हुएI और बाद में हम लोगों में यह तय हुआ कि अब से किसी भी नयी भौजी के साथ होली खेलनें की कोशिश नहीं करेंगेंI
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