वो
कहती है कि
वक़्त
के साथ
प्रेम
मेरा ढल जायेगा!
मैं
कहता हूँ
वक़्त
के साँचें जिसे ढाल दे
समझो
फ़िर वो प्रेम नहीं!
वो
कहती है कि
याद
है करना
उसे
रात दिन ख़्वाबों में!
मैं
कहता हूँ
पल
भर भी जिसे मैं भूला हूँ
ऐसी
कोई उसकी याद नहीं!
वो
कहती है कि
विश्वास
है उसको
किन्तु
तनिक डर लगता है!
मैं
कहता हूँ
किंचित
भर भी ग़र संशय हो
समझों
वो विश्वास नहीं!
-अमर
कुशवाहा
No comments:
Post a Comment