Monday, August 21, 2017

मानव-वृक्ष

मानव!

ईश्वर की सर्व्श्रेष्ठ रचना

नि:संदेह

एक वृक्ष ही है!

 

मानव-वृक्ष की जड़

होती है माँ!

सींचती रहती है अपने

रक्त से समय-समय पर!

 

मानव-वृक्ष का तना

होता है पिता

चट्टान सा खड़ा रखता है

जीवन के भयंकर अंधड़ में भी!

 

मानव-वृक्ष की टहनियाँ

होते हैं भाई-बहन

आकार तय करते है

उसके फैलाव का!

 

मानव-वृक्ष के पत्ते

होते हैं उसका घर!

जिसमे संश्लेषित होता है

निरंतर प्रेम-रुपी प्रकाश!

 

मानव-वृक्ष के उर्बरक-तत्व

होते हैं नात-हित-मित्र!

विकसित करते हैं मानव् को

अपनी क्षमतानुरूप!

 

मानव-वृक्ष के समस्त अंग

होते हैं अपने-अपने

साम्य में

सदैव से ही!

 

साम्य टूटा!

मानव-वृक्ष सूखा!

-अमर कुशवाहा

No comments: