रात
होते ही मैं पलकें बंद कर लेता हूँ
नींद
है कि फ़िर भी बेवफ़ा हो जाती है!
फ़ाइलों
में दिन भर दिमाग़ खपाता रहा
बीच-बीच
में सबका हाल भी जानता रहा
एक
फ़लक जो जैन से बैठे जब भी हम
ख़्वाहिशें
सबकी मेरा दिल तोड़ जाती हैं!
सबको
बहुत गुमान है अपने किये करम पर
जो
भी वो चाहें वो तोड़ दे नाक के धरम पर
एक
दिन केवल मैंने अपने मन की जो कर ली
अक्सर
इल्ज़ाम-ए-वफ़ा मुझसे जोड़ दी जाती हैं!
रूह
एक है मेरा तो फ़ना एक पर होगा
ख़ुशियाँ
मिलेंगी या ग़म अब फैसला होगा
मैं
फूल हूँ लेकिन मेरी जड़ें हज़ारों हैं
नफ़रत-ए-बहाव
में मुझे सब छोड़ जाती हैं!
-अमर
कुशवाहा
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