Tuesday, January 2, 2018

बादलों की किस्मत...

उस जहाँ में भी सदा--जरस रहे होते

ग़र घेरे हुये तिरे याद--कफ़स रहे होते!

 

बादलों की किस्मत में उड़ना लिखा है

ठहरे अगर होते कहीं तो बरस रहे होते!

 

जाने किस क़सूर में जमीं से अदावत हो गयी

वरना पाँव फैला बैठ कर दरस रहे होते!

 

आसमाँ अपना नहीं कह लौट कर वो गये

वरना बुलंदी आसमाँ की दस्तरस रहे होते!

 

मानता हूँ परवाज को पंख हैं जरूरीअमर

पर पैर होता तो कितना तरस रहे होते!


-अमर कुशवाहा

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