Wednesday, January 3, 2018

मुझको भुलाकर

ख़ाली महफ़िल तो क्या न अब शाद किया जायेगा?
उस गली जाकर फ़िर न अब फ़रियाद किया जायेगा!


चलो छोड़ देते हैं पलटना ज़िंदगी के सफ़हों को
गुज़रे एहसास को फ़िर न अब याद किया जायेगा!


राह-ए-वफ़ा को थाम कर मंज़िल को हम चले मगर
तेरी चाह में ख़ुद को फ़िर न अब बाद किया जायेगा!


वक़्त की रेत पर पत्थर भी दरिया हो जाते हैं
अपनी साँसों को फ़िर न अब ज़ियाद किया जायेगा!


तेरे अश्क़ के हर क़तरे में होगा दास्तान-ए- 'अमर'
मुझे भुल तुमसे फ़िर न अब फ़साद किया जायेगा।


-अमर कुशवाहा

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