Tuesday, July 24, 2018

बिछड़न...

इनकार किया फ़िर भी इसरार का मंजर रखते थे

जख्मों पर मरहम फैलाकर हाथों में खंजर रखते थे!

 

कंगन की खन-खन से कब तक ख़ुद को बहलाता?

चेहरे पर फ़ैली रहती हँसी नजरों में महज़र रखते थे!

 

ख्व़ाब दिखे आख़िर कैसे नींद का आना जरूरी था

माथे को थपकी देते थे पर मन को ख़ुद-सर रहते थे!

 

लिपटाकर भी दूर रखा था अपने मन के भावों से

था इश्क में डूबा दिल पर अधरों पर नश्तर रखते थे!


'अमर' अभी भी शेष वही है जैसा कि तुम छोड़ गये

मिलन का आसरा देते थे बिछडन महशर में रखते थे!


-अमर कुशवाहा

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