जब भी लिखा जाता है इतिहास
किसी भी युद्ध का
तो चर्चायें छिड़ती हैं
मात्र विजय एवं पराजय की
उनके समस्त कारण
और बाद के परिणाम की।
इतिहास कभी चर्चा नहीं करता
उन कटे-बिखरे धड़ों की
जिन पर कभी सिर सुशोभित थे।
इतिहास कभी चर्चा नहीं करता
उन रक्त से सनी नदियों का
जिनमें उनका भी रक्त शामिल था
जो युद्ध मे शामिल न थे।
इतिहास कभी चर्चा नहीं करता
उस कलेजे का, उस कंधे का
जिसके ऊपर इतने सारे
शवों का बोझ था।
यदि कभी इतिहास ने चर्चा किया होता
तो हर एक युद्ध मे मिला होता
एक लाचार, वेबस, वृद्ध योद्धा
भीष्म पितामह सरीखा।
जिसके मात्र एक वचन तोड़ देने से
या एक कदम भर आगे बढ़ जाने से
बच सकते थे लाखों के काँधों पर सिर!
बच सकती थी सुहागिनें जो अब
वैधव्य को श्रापित हो गयीं!
बच सकते थे वह बच्चे जो
बड़े होने से पहले ही अनाथ हो गये!
इतिहास चाहे जितना ही कोस ले
दुर्योंधन, शकुनि और कर्ण को,
किन्तु मेरी नज़र में
महाभारत का खलनायक
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