आज बरसो कि महफ़िल मयखाना बने
नज़्म छेड़ो ऐसी कि
कोई तराना बने!
उनके पायल की झनकार सुनायी दी
है
दीदार उनका हो जाये तो अफ़साना बने!
हम तो
बे-गैरत हैं करते क्यों परवाह?
डूब जाने दो इतना कि नया
ज़माना बने!
समंदर की
प्यास मुझे यहाँ ले
आयी है
वो चाहते हैं कि
सहरा में
आशियाना बने!
आज साकी को रहा
न अभी
होश ‘अमर’
कुछ तो
जहाँ में
सबर का
पैमाना बने!
-अमर कुशवाहा
No comments:
Post a Comment