ख़्वाबों के टूट जाने का अपना भरम होता है
किसको कितना मिला अपना करम होता है!
जरा फ़रेब पर ही दिल बिखर जाता है
आख़िर शीशे का भी अपना धरम होता है!
कोई क़रार न मगर राजदार ज़रूर है
सबका कोई अपना मोहतरम होता है!
कोई कैसे ख़ुद को रोके हर क़ज़ा से पहले
क़ातिल-ए-निगाह का अपना शरम होता है!
जुबाँ तक आकर रुक जाये तो अच्छा है ‘अमर’
अनकहे अल्फाजों का अपना मरम होता है!
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