Wednesday, June 12, 2024

मेरी हंसिनी

जिनके क़रीब होते हुए भी गले ना लगा पाये
और जिनसे कुछ कहने से पहले ही सारी बातें
बस कण्ठ तक आकर रुक गयीं!

जिन्हें जी भरकर देखना भी चाहा तो केवल
बस एक झलक ही देख पाये
कभी जिनके साथ जीवनभर रहने की चाह थी
बस केवल दो पल ही रह सके
और इस तरह घुट कर रह गई दो जिंदगियां!

अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
बातें भी नहीं होती
एक झलक देखना भी नहीं होता
बस रह गया है सपनों का झरोखा
जिससे कभी झांक कर हम दोनों
कभी कभी नींदों में बस मिल लेते हैं
और याद कर लेते हैं
कि कभी साथ में बिताये थे कुछ बसंत
कुछ सावन की बूँदों ने हमें साथ भिगोया था
किसी वट की छाया में साथ साथ सोये थे
हमें देखकर किसी ने हंसों का जोड़ा कहा था।

मेरी हंसिनी!
अब भी याद हो तुम!
शायद कभी समय की धार से
कोई एक सोता बह निकले
और हम मिल सकें
जैसे मिलते हैं रात और दिन
धरती और अम्बर।


-अमर कुशवाहा।
१५.१२.२०२१

1 comment:

Srishti said...

Romantic...