Monday, August 13, 2018

प्रेम की बाती...

ये दबी हुयी आह मेरी मुझको ही सबर देती है

मैं इज़हार भले करूँ आँखें सब कर देती है!


जाने इन रेखाओं में छिपी है कब तक तुमसे दूरी

जब नाम पुकारे कोई तेरा मन को एक लहर देती हैं!


मौसम चाहे सहरा सा हो और तन-मन बंजर सा पसरा

चुपके से मुझ तक आकर तेरी यादें ऑंखें भर देती हैं!


मौसम फ़िर लगता है बदला जैसे कि तुम आयी हो

कोयल बगिया की गाकर तेरे आने की खबर देतीं हैं!


घूम रहा है वन-उपवन तुमको हीअमरअब ढूंढ रहा

अंधियारे से हैं आँखें अंधी पर प्रेम की बाती नजर देती है!

-अमर कुशवाहा

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