बस शमां लाने का कुछ मैं जतन कर दूँ
चाहता हूँ
पल भर
के लिये रौशन कर
दूँ!
कितने ख़ामोशी में बैठे हो अंधेरों में
एक मुस्कान पर ख़ुद
को दर्पण कर दूँ!
निहार सकों तुम खुल
के आसमाँ सारा
सूरज को
इस क़दर
मैं शीतल कर दूँ!
पहुँच सको
बेहिचक अपने मक़ाम तक
हाथों से
पहाड़ों को
मैं ओझल
कर दूँ!
बहुत मासूमियत से हैं
सवाल तेरे ‘अमर’
-अमर कुशवाहा
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