Monday, March 9, 2015

केवल तुम

बस शमां लाने का कुछ मैं जतन कर दूँ

चाहता हूँ पल भर के लिये रौशन कर दूँ!

 

कितने ख़ामोशी में बैठे हो अंधेरों में

एक मुस्कान पर ख़ुद को दर्पण कर दूँ!

 

निहार सकों तुम खुल के आसमाँ सारा

सूरज को इस क़दर मैं शीतल कर दूँ!

 

पहुँच सको बेहिचक अपने मक़ाम तक

हाथों से पहाड़ों को मैं ओझल कर दूँ!

 

बहुत मासूमियत से हैं सवाल तेरेअमर

आओ जबाबों से तुझे मैं बोझल कर दूँ!

-अमर कुशवाहा

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