मैं अपनी मुहब्बत ज़ुबानी लिखूँगा
मेरे दिल में जो हैं तेरी आँखों में होंगे
मैं बहती नदी पर जब पानी लिखूँगा!
किसी दिन तुम्हारी कहानी लिखूँगा!
कोयल अभी भी कूकती तो होगी
गलियाँ अभी भी महकती तो होंगी
दरख़्तों का क्या है वो दरकते रहेंगे
मैं अपनी क़लम से रवानी लिखूँगा!
गलियाँ अभी भी महकती तो होंगी
दरख़्तों का क्या है वो दरकते रहेंगे
मैं अपनी क़लम से रवानी लिखूँगा!
किसी दिन तुम्हारी कहानी लिखूँगा!
मेरी राहें कभी तुमसे टकरा जो जायें
गुज़रा जमाना वो फ़िर याद आ जाये
तुम हँसके तो दामन छुड़ा तो लोगी
मैं अपने हिस्से की नादानी लिखूँगा!
किसी दिन तुम्हारी कहानी लिखूँगा!
ये रातें मेरी हैं जो सोती नहीं हैं
तुमसे भी बातें अब होती नहीं हैं
औरों की क़िस्मत जहानी भी होंगे
मैं रिश्तों को फ़िर भी रूहानी लिखूँगा!
किसी दिन तुम्हारी कहानी लिखूँगा!
मैं अपनी मुहब्बत ज़ुबानी लिखूँगा!
मेरे दिल में जो हैं तेरी आँखों में होंगे
मैं बहती नदी पर जब पानी लिखूँगा!
मैं बहती नदी पर जब पानी लिखूँगा!
किसी दिन तुम्हारी कहानी लिखूँगा!
-अमर कुशवाहा
-अमर कुशवाहा